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Kirori Mal - Model Maker

किरोड़ी मल: एक आदर्श मॉडल मेकर एवं मास्टर आर्किटेक्ट्स के महत्वपूर्ण सहयोगी

किरोड़ी मल: एक आदर्श मॉडल मेकर एवं मास्टर आर्किटेक्ट्स के महत्वपूर्ण सहयोगी

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८० और ९० के दशक के दिल्ली के आर्किटेक्ट्स के लिए किरोड़ी मल एक जाना पहचाना नाम है। छात्रों और पेशेवर फ़र्मों के आर्किटेक्चर मॉडल के लिए जाने माने मॉडल निर्माता का साक्षात्कार आर्किटेक्ट अनुपम बंसल और ArchitectureLive! के राजेश अडवाणी द्वारा किया गया। लगभग १-१/२ साल के निरंतर प्रयास के बाद इन पारम्परिक शिल्पकार की आर्किटेक्चरल मॉडल मेकर के रूप में परिवर्तन की कहानी को सामने लाने में हम कामयाब हुए हैं । किरोड़ी मल का इस शिल्प के प्रति जुनून एवं विस्तार के सूक्ष्म दृष्टिकोण ने उन्हें इस मॉडल मेकिंग की कला में सक्षम बनाया।

जांगिड़ समुदाय के किरोड़ी मल का जन्म सन १९४३ में हरियाणा के जरथल गांव में हुआ था। जांगिड समुदाय, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब राज्यों में बढ़ईगीरी, लकड़ी की नक्काशी और विशेष रूप से फर्नीचर बनाने के पारंपरिक व्यवसाय के लिए जाना जाता है।

किरोड़ी दिल्ली में आर्किटेक्चरल मॉडल मेकिंग के दादा कहे जाते हैं। यह एक शिल्प है जिसमें राजस्थानी बढ़ईयों का बड़ा योगदान हैं। मुझे उनके साथ केवल एक बार काम करने का अवसर मिला, लेकिन कई बार उनके शिष्यों के साथ काम किया, जिन्होंने स्वतंत्र व्यवसाय स्थापित किया, और जो किरोड़ी मल को आज भी अपना गुरु मानते हैं ।

~ आर्किटेक्ट अशोक बी. लाल

किरोड़ी मल ने बढ़ईगीरी और लकड़ी के काम के कौशल को अपने पूर्वजों से सीखा था। उनका मानना है कि, उनकी गणित और ज्यामिति में रुचि ने उन्हें एक कुशल मॉडल निर्माता के रूप में स्थापित किया। ज्यामिति में उनके कौशल ने उन्हें भारत में आधुनिक वास्तुकला को परिभाषित करनेवाली स्थापत्य कृतियों के दिग्गज वास्तुकार जैसे अच्युत कानविंदे और जोसेफ एलन स्टाइन के साथ काम करने का आत्मविश्वास दिया।

किरोड़ी मल ने स्कूल छोड़ने के बाद कांच के काम, सैनिटरी और बिजली के काम का भी कौशल सीखा था, एवं उसका अनुभव लिया था। अपने गुरु, सरदार परून सिहं के साथ कुछ कार्यकाल और शिक्षुता के बाद, वे १९५६ में दिल्ली में नौकरी की तलाश में आए।

किरोड़ी मल के साथ शुरुआती मुलाक़ात

१९९३ में ARCOP में इंटर्नशिप के दौरान, अनुपम बंसल का जेपी पैलेस होटल प्रोजेक्ट पर काम करनेवाले अपने साथियों के साथ आनंद पर्वत में किरोड़ी मल की कार्यशाला में अक्सर जाना होता था।

वे याद करते हैं कि किरोड़ी मल के साथ हर मुलाकात विस्मय से भरी होती थी, “जबकि किरोड़ी मल की निगाहें मॉडल पर टिकी होती थी, उनके हाथ लगातार तत्पर्ता से चलते थे। बात करते हुए, उन्हें मॉडल मेकिंग के लिए आवश्यक उपकरण बिना देखे उठाने में कोई कष्ट नहीं होता था । उनके तेज़ हाथ और उँगलियाँ हथौड़े से आरी और छेनी तक दौड़तीं थीं । केवल वही जानते थे कि कौन सा उपकरण कहाँ और कैसे रखा गया है । किरोड़ी मल को मॉडल बनाते हुए देखना किसी मशीन को काम करते हुए देखने के समान था।“

कई आर्किटेक्ट बताते हैं, मॉडल बनाने के अनुभव के कारण, किरोड़ी मल की वास्तुशिल्प विवरणों को समझने की क्षमता, कई अनुभवी आर्किटेक्ट्स से भी बेहतर थी, और इसी वजह से वह अनेक वास्तुशिल्प स्टूडियो के लिए डिजाइन टीम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए थे, जो अक्सर जटिल ज्यामिति मुद्दों को कम समय में हल कर लेते थे।

२०१७ में पहली मुलाकात के लगभग २५ वर्षों के बाद, अनुपम बंसल की मुलाक़ात किरोड़ी मल के भतीजे, अंकित से हुई। अंकित, ABRD Architects के एक एक परियोजना के लिए एक मॉडल बनाने के लिए चुने गए थे। अंकित ने भी किरोड़ी मल से ही मॉडल बनाने का कौशल हासिल किया था, और उन्हें अपना गुरु मानते थे।

किरोड़ी मल का स्कूल ऑफ प्लानिगं एंड आर्किटेक्चर (एसपीए) के लिए मॉडल बनाने के लिए का अनुभव

१९५६ में, दिल्ली आने के बाद, किरोड़ी ने कई छोटे बढ़ईगीरी कार्यों पर काम किया। अंततः उन्हें भारतीय मानक संस्थान (आई एस आई) में एक वरिष्ठ बढ़ई के रूप में नौकरी मिल गई, जो स्कूल ऑफ प्लानिगं एंड आर्किटेक्चर, दिल्ली के काफ़ी निकट था।

उस समय, एसपीए के कुछ छात्र एक ऐसे बढ़ई की तलाश में थे जो उनके लिए मॉडल बना सके। वे किरोड़ी मल के संपर्क में आए। किरोड़ी मल ने कुछ शुरुआती झिझक के बाद इस कला को सीखने की चुनौती और अतिरिक्त पैसे कमाने के अवसर के रूप में लिया। मॉडल बनाने को बेहतर ढंग से समझने के लिए, किरोड़ी मल अपना अतिरिक्त समय, लंच ब्रेक के दौरान इमारतों को देखने और वास्तुशिल्प ड्रॉइंगस को समझने में व्यतीत करने लगे।

जल्द ही, वह 3D मॉडल की कल्पना करने के लिए चित्र और सहसंबंध, योजनाएं, अनुभाग और उन्नयन समझने लगे। प्रत्येक बीतते दिन के साथ, वह वास्तुशिल्प चित्रों को समझने में बेहतर होते गए। एसपीए के छात्रों और शिक्षकों के साथ उनका सम्बंध  धीरे-धीरे बढ़ता गया, जिससे उन्हें पेशेवरों के संपर्क में आने में मदद मिली- प्रो. झाबवाला और प्रो. बहादुर जैसे प्रसिद्ध शिक्षाविद अपने मॉडल बनवाने के लिए उनसे संपर्क करने लगे। शंकर मार्केट में सैनी चोपड़ा सहगल आर्किटेक्ट्स ने अपने पहेले आर्किटेक्चरल मॉडल के लिए किरोड़ी मल ही चुना। ज्यादातर समय डबल शिफ्ट में काम करते हुए, किरोड़ी ने आई एस आई में अपनी पूर्णकालिक नौकरी और कई वर्षों तक अंशकालिक मॉडल बनाने का व्यवसाय जारी रखा।

१९७६ तक, दिल्ली के प्रमुख आर्किटेक्ट्स जैसे जोसेफ एलन स्टाइन, कानविन्दे राय चौधरी और सीईएस मॉडल बनाने के काम के लिए किरोड़ी मल को नियुक्त करते थे। किरोड़ी मल मॉडल बनाने के कार्य में काफ़ी दिलचस्पी लेने लगे ओर व्यस्त रहने लगे। कुछ समय बाद, उन्हें आईएसआई की नौकरी, या मॉडल बनाने वाले व्यवसाय के बीच चयन करना पड़ा- किरोड़ी मल ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी और एक पेशेवर मॉडल निर्माता बन गए। आनंद पर्वत, दिल्ली स्थित एक छोटी कार्यशाला से उन्होंने अपना यह कार्य शुरू किया।

किरोड़ी मल याद करते हैं,

उस समय सरकारी नौकरी छोड़ना अकल्पनीय था। मेरे साथियों और दोस्तों ने मुझे अपने फैसले पर पुनर्विचार करने की सलाह दी। सभी दोस्तों और परिचितों ने मुझे इस बड़ी गलती के खिलाफ चेतावनी दी।“

७० के दशक से ९० के दशक के अंत तक, किरोड़ी मल ने दिल्ली में प्रतिष्ठित वास्तुकारों के साथ काम किया। वह जोसेफ एलन स्टाइन और एपी कंविंदे के साथ साझा किए गए व्यक्तिगत सम्बंध को सबसे ज्यादा यादगार मानते हैं।

एक बार श्री कंविंदे ने मुझे अपने कार्यालय में बुलाया और बड़ौदा में एक संस्थान की योजना और रूपरेखा का उल्लेख किया। उन्होंने मुझे एक स्टडी मॉडल बनाने के लिए कहा, जो उन्हें डिजाइन को और विकसित करने में मदद कर सके। अपनी वर्कशॉप में मैंने महसूस किया कि उनके स्केच में कुछ गलती थी। शाम हो चुकी थी और मुझे अगली सुबह मॉडल की डिलीवरी करनी थी। समय कम था, इसलिए मैंने अपने दम पर सही ड्राइंग की कल्पना की और अगली सुबह मॉडल को उनके पास ले गया। मैं उनकी गलती उन्हें बताने से काफी डर रहा था, फिर भी अपनी हिम्मत जुटाकर मैंने गलत ऊंचाई वाले स्केच के बारे में उन्हें बताया । इसने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया कि गलत स्केच के बावजूद, भी मैंने इमारत की सही ऊंचाई की कल्पना कर के सही मॉडल बना लिया। शालीनता से, उन्होंने माना कि ड्रॉइंग में गलती थी, और मॉडल करने के लिए मेरी प्रशंसा भी की। 

श्री कानविंदे के बेटे, संजय, याद करते हैं, “किरोड़ी मल अन्य मॉडल निर्माताओं की तुलना में आश्चर्यजनक रूप से तेज़ काम करते थे। वह श्री कानविन्दे की शैली को अच्छी तरह समझते थे, और कभी-कभी स्केच के आधार पर पूर्ण विकसित मॉडल बना देते थे। वह उन छात्रों के लिए भी पूरा मॉडल तैयार कर देते थे, जो उन्हें अपूर्ण चित्र व जानकारी प्रदान करते थे।”

कानविंदे की तरह, स्टाइन ने भी कश्मीर में कन्वेंशन सेंटर और दिल्ली में अमेरिकी दूतावास अपार्टमेंट जैसी कई प्रतिष्ठित परियोजनाओं के लिए किरोड़ी मल को नियुक्त किया। स्टाइन के विनम्र स्वभाव और विभिन्न मॉडल बनाने की तकनीकों का पता लगाने की स्वतंत्रता ने किरोड़ी मल को काफ़ी प्रेरित किया था। स्टाइन अंग्रेजी में बात करते थे जबकि किरोड़ी केवल हिंदी समझ सकते थे – जहां भाषा बाधा होती थी – ड्रॉइंगस भाषा का काम करती थीं। वास्तुशिल्प चित्रों को समझने की उनकी क्षमता के कारण, स्टाइन डिजाइन प्रक्रिया की शुरुआत से ही किरोड़ी को शामिल कर लेते थे।

लेकिन, एक समय पर किरोड़ी ने स्टाइन के लिए काम करना छोड़ दिया था। वह याद करते हैं, “एक प्रोजेक्ट के दौरान, मेरी भरसक कोशिश करने पर भी, पतले ब्लेड से खिड़कियों को काटते समय, कट के निशान हमेशा खिड़कियों से आगे बढ़ जाते थे। श्री स्टाइन के सहयोगी ने मॉडल को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। मैंने उन्हें समझाया कि मॉडल के स्केल और औज़ारों के कारण, मॉडल इससे अलग नहीं बन सकता था । मैं उन्हें मनाने में असफल रहा। उनके व्यवहार से परेशान आ कर मैंने स्टाइन के ऑफिस के लिए मॉडल बनाना छोड़ दिया।

किरोड़ी मल को मानने के बाद, जल्द ही श्री भल्ला ने उसी प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए ने उन्हें वापस  बुला लिया “जब मैंने  मॉडल को फिनिशिगं में कुछ सुधारों के साथ पूर्ण किया, तो श्री स्टाइन ने अच्छे काम के लिए मेरी तारीफ की। उन्होंने अपने ऑफ़िस के अन्य आर्किटेक्ट्स के साथ मेरे काम की बेहद तारीफ़ भी की।“

“लकड़ी काम करने के लिए मेरी पसंदीदा सामग्री थी। मुझे इसके साथ काम करने में बहुत मज़ा आता था।” किरोड़ी मल जल्द ही academic से लेकर स्टडी मॉडल तक और पेशेवरों के लिए विस्तृत सभी प्रकार के वास्तुशिल्प मॉडल के साथ काफ़ी व्यस्त हो गए। किरोड़ी मल बताते हैं, “हम कन्सल्टिंग एंजिनीरिंग सर्विसेज़ (सीईएस), सी.पी. कुकरेजा, कंविंदे राय चौधरी और स्टाइन के लिए मॉडल बनाते थे। उन दिनों के मॉडल कभी-कभी 1 मि मी x 1 मि मी से कम लकड़ी में रेलिगं जसै तत्वों के साथ बहुत विस्ततृ होते थे। हमें बेहद सावधान और केंद्रित रहना पड़ता था। लकड़ी के मॉडलशिल्प में उच्च कौशल की आवश्यकता होती है।”

किरोड़ी मल ने एक और रोचक याद को ताज़ा करते हुए बताया “एक फ़्रांसीसी ढेकेदार ने, जो टर्की में एक मस्जिद निर्माण का काम कर रहे थे, मुख्य प्रार्थना कक्ष के डिज़ाइन को समझने के लिए उन्होंने मुझसे सम्पर्क किया। वह एक साधारण आयताकार पर, जटिल गुम्बदाक़र छत  वाला कमरा था जिसके निर्माण लागत अनुमान लगाने के लिए वे सही ढंग से कल्पना नहीं कर पा रहे थे। मैंने शाहपुर जाट स्थित उनके कार्यालय में ३-४ घंटे बिताए। उन्होंने मुझे केवल एक दिन में प्रोटोटायप बनाने का समय दिया। “मैंने पहेले इस तरह के आकर बनाने पर कभी काम नहीं किया था। यह एक बहुत ही जटिल आकार था। गुम्बद की डिज़ाइन ने मुझे काफ़ी बेचैन कर दिया, क्यूँकि मै उसे सुलझा नहीं पा रहा था। अक्सर इस तरह की समस्याएँ मेरे दिमाग़ में रात भर रहती और उनके समाधान के लिए व्हिस्की मेरा साथ देती थी। उस रात भी व्हिस्की के कुछ पेग के बाद मैंने उसकी ज्यमिति को समझ कर उसका प्रोटोटायप बनाने की विधि का पता लगा पाया। अगली सुबह मैंने प्रोटोटायप पर काम शुरू किया और शाम तक पूरा कर के उन्हें देने में कामयाब हुआ। फ़्रांसीसी ठेकेदार ने मुझे बताया की आमतौर पर आर्किटेक्चरल भाषा में इस आकर को स्कविंच आर्क के रूप में जाना जाता है।“

इस तरह के कई वास्तुशिल्प मॉडलों पर अलग-अलग जटिलताओं के साथ काम करने के बाद किरोड़ी मल अत्यंत प्रसिद्ध मॉडल मेकर बन गए; इस हद तक कि अगर उन्हें लगता था कि अगर किसी डिज़ाइन का मॉडल नहीं बनाया जा सकता है, तो वो बिल्डिंग भी नहीं बन पाएगी, और आर्किटेक्ट पूरी तरह से अपने डिजाइनों पर पुनर्विचार करते थे।

वह आर्किटेक्ट साहनी के साथ एक घटना को याद करते हैं जहां वह एक मॉडल के माध्यम से एक इमारत की ज्यामिति को हल नहीं कर पा रहे थे, “मैंने इसे समझने की कोशिश में कई  दिन बिताए, लेकिन डिजाइन के साथ कुछ सही नहीं थी , और यह बात मुझे परेशान करती रही । अंत में, मैंने साहस जुटाया और उन्हें समझाया कि ड्रॉइंग सही नहीं है और ज्यामिति में कुछ गड़बड़  है। मेरी सलाह पर, उन्होंने तुरंत निष्कर्ष निकाला कि यदि मैं मॉडल नहीं बना सकता, तो इससे इमारत बनाना भी संभव नहीं है।“

मैंने इस स्वशिक्षित पेशे में खुद को ऊपर उठाने संघर्ष भरे रास्ते को चुना है।” – किरोड़ी मल

७९ साल की उम्र में भी, किरोड़ी मल नए असाइनमेंट स्वीकार करते है, अकेले काम करना पसंद करते है, और हर नए प्रोजेक्ट के लिए बच्चों जैसा उत्साह बनाए रखते है। खानपुर में उनकी कार्यशाला की दीवारें, मॉडल बनाने के लिए सभी प्रकार के कस्टम लघु उपकरणों दर्शित है। इसके अलावा, वहाँ जामा मस्जिद मॉडल की एक श्वेत-श्याम तस्वीर भी प्रदर्शित करती हैं।

मुझे जामा मस्जिद का एक स्केच प्लान दिया गया था। जामा मस्जिद के लिए कोई चित्र नहीं थे। मैं अपनी मोटर साइकिल पर बस एक-दो बार इसके चारों ओर गया और अपने दिमाग में हर विवरण को याद किया। एक मानसिक मानचित्र के साथ, मैं पूरे मॉडल का निर्माण करने में सक्षम हुआ। मौका मिलता तो ताजमहल का बेहतरीन नमूना भी बना लेता।“ – किरोड़ी मल हंसते हुए बताते हैं।

पांच दशकों की अवधि में, किरोड़ीमल ने गुणवत्ता, भौतिकता और शिल्प कौशल के मामले में वास्तुकला अभ्यास और मॉडल बनाने में बदलाव देखा है। हस्त निर्मित मॉडल की जगह अब लेज़र कट और प्लास्टिक मॉडल की प्राथमिकता बढ़ गयी है, “मशीनें हमारी और से काम कर सकती हैं, लेकिन वे कभी भी ज्यामिति को अपने दम पर हल नहीं कर सकती हैं। यह अब व्यावसायिक हो गया है, और यहां तक कि आर्किटेक्ट भी शायद ही इस शिल्प कौशल का सम्मान करते हैं। गुणवत्ता के साथ समझौता करते हुए हर कोई शॉर्टकट और तेजी से काम करना चाहता है।

उन्हें लगता है कि , इस प्रौद्योगिकी-संचालित युग में, आज की पीढ़ी में धैर्य और विस्तार की दृष्टि का अभाव है। वह अकेले काम करना पसंद करते है क्योंकि वह सही प्रतिभावान व्यक्ति को खोजने में असमर्थ होते है, “किसी भी कला को पूर्णतः सीखने के लिए कोई शॉर्टकट नहीं है। यदि आप जो करते हैं उससे खुश और संतुष्ट रहना चाहते हैं तो अपने आप को पूरी तरह से उस में समर्पित कर दें ; आप इस माध्यम से ही अपना रास्ता खोजने में सक्षम होंगे।”

आज, भौतिक मॉडल बनाने की कला धीरे-धीरे अपनी प्रासंगिकता खो रही है। आर्किटेक्ट्स ने आधुनिक तकनीको को भौतिक मॉडल से ज़्यादा अपना लिया है। जैसा आर्किटेक्ट संजय कंविंदे साझा करते हैं , “श्री कानविन्दे (उनके पिता अच्युत कानविन्दे) मॉडल के साथ पूरी इमारत के आसपास काम करना और जंक्शनों को हल करना पसंद करते थे। सॉफ्टवेयर निर्भरता के कारण आज का संदर्भ बदल गया है, जिससे मॉडल बनाने की कला अप्रासंगिक हो गई है। जब हमारे सामने एक भौतिक मॉडल होता है तब  ही हम बहुत संतुष्ट महसूस करते हैं। हमने अभी तक उस प्रथा को नहीं छोड़ा है। लेकिन बहुत से आर्किटेक्ट्स अब मॉडल नहीं बनाते हैं। यह शिल्प अब एक अर्थ में समाप्त हो गयी है । 

किरोड़ी मल का साक्षात्कार हमें उस समय में ले गया जब हर सफल निर्मित परियोजना के पीछे, कई मॉडल थे जिन्हें त्याग दिया जाता था, परिष्कृत किया जाता था, हर चरण में फिर से काम किया जाता था। वास्तुकला एक बहुआयामी पेशा है। गतिशील दुनिया व्यक्तियों और योगदानकर्ताओं का गठन करती है जो औपचारिक रूप से प्रशिक्षित वास्तुकार से आगे बढ़ते हैं। एक व्यापक डिजाइन प्रक्रिया हर परियोजना के पीछे एक दृष्टि को साकार करने की दिशा में जाती है, जिसमें कई अदृश्य टीम के सदस्यों का योगदान शामिल होता है जो  ‘बहुत सार्वजनिक’ वास्तुकार द्वारा छायांकित हो जाते हैं।

यह लेख एक ऐसे व्यक्ति और कई अन्य किरोड़ी मल को श्रद्धांजलि है , जिनके योगदान पर अक्सर किसी का ध्यान नहीं जाता लेकिन जो अपने कौशल के माध्यम से निर्माण को संभव बनाते रहते हैं।


Credits – Anupam Bansal, Rajesh Advani, Shreedevi, Priya Anandani, Megha Pande
हिंदी अनुवाद – Subhash & S.K. Bansal, Rajesh Advani

Acknowledgements – Ashok Lall, Meena Mani, Sanjay Kanvinde

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